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आ रु॑द्रास॒ इन्द्र॑वन्तः स॒जोष॑सो॒ हिर॑ण्यरथाः सुवि॒ताय॑ गन्तन। इ॒यं वो॑ अ॒स्मत्प्रति॑ हर्यते म॒तिस्तृ॒ष्णजे॒ न दि॒व उत्सा॑ उद॒न्यवे॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā rudrāsa indravantaḥ sajoṣaso hiraṇyarathāḥ suvitāya gantana | iyaṁ vo asmat prati haryate matis tṛṣṇaje na diva utsā udanyave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। रु॒द्रा॒सः॒। इन्द्र॑ऽवन्तः। स॒ऽजोष॑सः। हिर॑ण्यऽरथाः। सु॒वि॒ताय॑। ग॒न्त॒न॒। इ॒यम्। वः॒। अ॒स्मत्। प्रति॑। ह॒र्य॒ते॒। म॒तिः। तृ॒ष्णऽजे॑। न। दि॒वः। उत्साः॑। उ॒द॒न्यवे॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:57» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब आठ ऋचावाले सत्तावन सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में रुद्रगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (हिरण्यरथाः) सुवर्ण रथों में जिनके अथवा तेज के सदृश रथ जिनके वे (सजोषसः) समान प्रीति सेवने और (इन्द्रवन्तः) बहुत ऐश्वर्य्य रखने और (रुद्रासः) दुष्टों को रुलानेवाले (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिए (आ) सब और (गन्तन) प्राप्त होवें और जो (इयम्) यह (अस्मत्) हम लोगों के समीप से (मतिः) बुद्धि है वह (वः) आप लोगों की (प्रति, हर्यते) कामना करती है और (तृष्णजे) तृष्णायुक्त (उदन्यवे) जल की इच्छा करनेवाले के लिए (उत्साः) कूप (न) जैसे वैसे जो (दिवः) कामनाओं की कामना करते हैं, वे हम लोगों से निरन्तर सत्कार करने योग्य हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे पिपासा से व्याकुल के लिये जल शान्तिकारक होता है, वैसे विद्वान् जन जानने की इच्छा करनेवालों के लिए शान्ति के देनेवाले होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ रुद्रगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा हिरण्यरथा सजोषस इन्द्रवन्तो रुद्रासः सुवितायाऽऽगन्तन। येयमस्मन्मतिः सा वः प्रति हर्यते तृष्णज उदन्यव उत्सा न ये दिवः कामयन्ते तेऽस्माभिः सततं सत्कर्त्तव्याः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (रुद्रासः) दुष्टानां रोदयितारः (इन्द्रवन्तः) बह्विन्द्र ऐश्वर्य्यं विद्यन्ते येषान्ते (सजोषसः) समानप्रीतिसेविनः (हिरण्यरथाः) हिरण्यं सुवर्णं रथेषु येषान्ते यद्वा हिरण्यं तेज इव रथा येषान्ते (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (गन्तन) गच्छथ (इयम्) (वः) युष्मान् (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (प्रति) (हर्यते) कामयते (मतिः) प्रज्ञा (तृष्णजे) यः तृष्णाति तस्मै (न) इव (दिवः) दिवः कामनाः (उत्साः) कूपाः (उदन्यवे) उदकानीच्छवे ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा तृषातुराय जलं शान्तिकरं भवति तथा विद्वांसो जिज्ञासुभ्यः शान्तिप्रदा भवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात रुद्र व वायूच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे तृषार्ताला जल शांत करते तसे विद्वान लोक जिज्ञासूंना शांतिदायक असतात. ॥ १ ॥